Wednesday, May 27, 2009

चाय की चुस्कियां

लेते चाय की चुस्कियां; समोसे के साथ,
चाहे जेब खाली , है जीने का फितूर,
बात निकलती बातो से; दोस्तों के साथ,
चाहे सच्ची-झूठी, है जीने का फितूर,
बनाते पुल सपनो के; अपनों के साथ,
चाहे असली-नकली, है जीने का फितूर,
पाते सारी खुशिया ठहाको के साथ
चाहे आंसू ढलके, है जीने का फितूर,
कहते रसीले किस्से;  बौछारों के साथ,
होते खट्टे-मीठे,  है जीने का फितूर,
बनाते माहोल ताजा;  ज़माने के साथ,
पाते जोश मे होश, है जीने का फितूर,
चलना हो तो चलिए दीवाने के साथ
थोडा साथ जीले, है जीने का फितूर.
रहता हैं "गुलफाम" जिन्दगी के साथ,
फिर मिले-नामिले, है जीने का फितूर.

फितूर=झक/सनक/लगन

Sunday, May 24, 2009

माज़रा क्या है?

दीवानों से फिरते हैं , सोचते हैं  माज़रा क्या है?
घूमते हैं रस्ते पे, बेखुदी मे आसरा क्या है?
[माज़रा= matter, आसरा= shed ]

गम-गुफ्तारी मैखाने मे , पूछते हैं पैमाना क्या है?
गिनते हैं धडकने सीने मे, दिल  का जुर्माना क्या है?
[गम-गुफ्तरी=talking of पैन]

झगड़ते हैं  खैरख्वाहों से , देखते हैं जामा  क्या है?
पाते हैं खुद को  उफक पे,  तन्हाई का सामा क्या है?
[खैरख्वाहों= wel wishers, जमा= group/society, उफक=horizon ]

हैं आँखे तर अश्कों से, जहाँ मे पाना क्या है?
गम-ए-हयात हासिल है, अब और कमाना क्या है?
[तर=wet, अश्कों= tears, हयात= life]  

जिन्दगी बेलगाम छोडा किये, सोचने से होना क्या है?
हुए बहुत से शाइर, "गुलफाम" अब रोना क्या है? 

Monday, May 18, 2009

एक सम्पूर्ण बसंत

उनींदी सी वो सुबह, उदास सा वो मंजर,
खुशियों का वादा, अपनेपन का साथ,
भेद कुछ खोलने, कुछ बनाने निकले,
छोटी सी वो सवारी छोटा सा वो सफ़र,

कोई कितना अलग, कोई  कितना जुदा,
कोई किसीसे खफ़ा, कोई उम्मीद लिए,
कुछ रिश्ते जोड़ने, कुछ कहानिया बुनने,
मिले कुछ साथी, शायद पिछला था बदा,

तार कई अनदेखे, दिलो को जोड़ते ,
संभलते कदम, क्यारियों की मेड पे,
हवावों की लिखी, रेत पे इबारत पढ़ते,
मासूमियत के बहाव से,  बांधो को तोड़ते,  

कुछ अनगढ़ पर, सम्पूर्ण जीवन पाते,
बटोरते बिखरे रूहानी तजुर्बात,
कुछ और अनदेखे तार जोड़ लेते ,
महसूसते, और रूहानियत को बड़ा पाते.

छोटो सा ये जीवन, पर विस्तार अनंत,
अभी एक झरोखे से सिर्फ झाँका है,
क्या मिलेगा आराम की सौ सर्दियाँ से?
मिला जो प्रकृति का, एक सम्पूर्ण बसंत.



Friday, May 15, 2009

अंदाज़-ए-शायर

पहली झलक वो  उनकी, ताज़ा है जेहन मे,
अदाएं उल्फत के, गेसू चिलमन सा लगते हैं.

सांसो की वो महक उनकी, फिजाओं मे तैरती है,
आहें आरजू के, दामन परवाज सा लगते हैं,

जादू वो आवाज मे उनके, संगीत सा कानो मे,
कशिश चाहत के, होंठ नगमा सा लगते हैं.

पैराहन बदन पर उनके, चेहरे पर मुस्कान,
इरादे हुस्न के, अंदाज़ कातिल सा लगते है

न पाकर सामने उनको,  बनाई तस्वीर दिल मे, 
रंग मोहब्बत के, आँखे आइना सा लगते हैं,

उनकी चाहत ने, एक और "गुलफाम" बनाया,
मिजाज़ आशिक के, अंदाज़ शायर सा लगते हैं.


Sunday, May 10, 2009

मेरी आवाज खो गयी

आवाजो की दुनिया मे,
कभी अचानक
सब कुछ शांत हो जाता
एक हलकी सी आहट,
और सब कोलाहल मे बदल जाता,
ऐसा ही चला आ रहा है,
सदियों से,

अनेक आवाजें,
इस कोलाहल मे,
अपना अस्तित्व खोजतीं,
कुछ कर्कश, कुछ मधुर,
कोई तेज, कोई मंथर,
हर एक आवाज अलग,

मेरी आवाज खो गयी मालूम होती है,
या फिर शायद मैंने जाना ही नहीं,
किसी को पता है;
के मेरी आवाज कौन सी है?

Tuesday, May 5, 2009

रूबरू

ज़माने के दस्तूर ने,
बहुत बे-आबरू किया, 
आज भी फिकरे हैं लेकिन,
गुफ्तगू कुछ और है,

ख्वाहिसों को पाने मे,
हम उम्र गुजार देते ,
छोटी है फेहरिस्त लेकिन,
आरजू कुछ और है,

नाहक ही परेशां थे,
काबिल-ए-हयात होने मे,
सामा तो बहुत है लेकिन,
जुस्तजू कुछ और है,

ज़माने की किस्सागोई,
तमाशों की मोहताज़ है,
किस्सा तो वही है लेकिन,
तवज्जू कुछ और है,

तारीख मे जो लिखा था,
फीका भी न हो सका,
हालात तो वही है लेकिन,
रूबरू कुछ और है,